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नारी तुम स्वयं सिद्धा हो

नमन मंच
मेरे जज्बात 




       नारी तुम स्वयं सिद्धा हो


नारी तुम श्रष्टि रचिता तुम शक्ति अवतारी । 
फिर क्यो तुम चिराग तले देख अंधेरा डरती।। 
जग को रोशन करने वाली स्वयं डरती क्यो। 
क्यो चाहिए तुम्हे उधार का प्रकाश।। 
तुम स्वयं प्रकाश हो तम तुम ही लाती। 
श्रष्टि तुम से प्रकाशमान।। 
सूर्य सा तेज तुम हो तुम संसार का आधार। 
क्यो जानती खुद को निराधार।। 
तुम जग का आधार। 
तुम से तुम से ही वसंत।। 
वो द्वार जो करे एक बंध चार देता खोल। 
आज जो दे आँसू कल कुछ होगा बेहतर।। 
उसमें सिर्फ उस मैं कर विश्वास। 
आत्मबल तू जगा।। 
सवाल नही इतिहास तू गढ़। 
अथाह तुझ मैं सहन करने की शक्ति।। 
तो क्या उसका मतलब कमजोर मानती। 
तपता लोहा बनता कुंदन।। 
वैसे तुम बनती परिपक्व। 
तालमेल तुम संसार बिठाती। 
नारी तुम स्वयं सिद्धा क्यो प्रशन दूजे से पूछती।। 
छु ले गगन जहाँ तेरा। 
बीज को तू परिपक्व बनाती।। 
शिशु को तू इंसान बनाती। 
शिशु अबोध अंजान दुनिया स्वयं तू बताती।। 
नही लेती दुजा सहारा। 
नारी तू स्वयं सिद्धा । 


वर्षा उपाध्याय
खंडवा एम. पी.

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4 Comments

बेहतरीन

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शानदार लिखा है

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Ajay Tiwari

01-Apr-2023 08:32 AM

Very nice

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